इन चीजों से परहेज करें गठिया के रोगी

इन चीजों से परहेज करें गठिया के रोगी

कपालभाथी, वातक्रम कपाल भाथी, पैरों की सूक्ष्म क्रियाएं, तितली आसन, ताड़ासन तानासन, एक पाद उत्तानासन, एक पाद चक्रिकासन, कटिचक्रासन, एक पाद पवनमुक्तासन, मकरासन, हाथों की सूक्ष्म क्रियाएं, ग्रीवा शक्ति विकासक क्रियाएं, सूर्यभेदी प्राणायाम, भस्त्रिका, भ्रामरी और शवासन करने से गठिया का मूल कारण दूर हो जाता है।

गठिया यानी आर्थराइटिस में योग और व्‍यायाम की भूमिका को डॉक्‍टर भी नहीं नकारते हैं। एम्‍स के निदेशक रहे वरिष्‍ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर पी.के. दवे मानते हैं कि योग की इस बीमारी के इलाज में प्रभावी भूमिका हो सकती है मगर कई सावधानियां बरतने के बाद।

इस बारे में दिल्‍ली के योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी कहते हैं कि योग गठिया में बहुत फायदेमंद होता है। उनके अनुसार जब हमारी प्राणशक्ति का प्रवाह जोड़ों में ठीक से न हो तो गठिया की शिकायत होती है। इस रोग की मुख्य वजह गलत खान-पान, व्यायाम न करना, लगातार कब्ज रहना आदि है।

सुरक्षित गो‍स्‍वामी कहते हैं कि गठिया के रोगियों को मैदे से बने पदार्थ, ठंडे पेय पदार्थ, तला-भुना खाना, चावल, दही, पनीर, खट्टे पदार्थ, उड़द की दाल, बैंगन, भिंडी आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके बदले हलका सुपाच्य भोजन, सब्जियेां का सूप, विटामिन और खनिज लवण वाला भोजन करना चाहिए। 15 ग्राम बथुए के ताजा पत्तों का रस सुबह खाली पेट और शाम को एक से दो माह तक लेने से आराम मिलता है।

खान पान के अलावा कपालभाथी, वातक्रम कपाल भाथी, पैरों की सूक्ष्म क्रियाएं, तितली आसन, ताड़ासन तानासन, एक पाद उत्तानासन, एक पाद चक्रिकासन, कटिचक्रासन, एक पाद पवनमुक्तासन, मकरासन, हाथों की सूक्ष्म क्रियाएं, ग्रीवा शक्ति विकासक क्रियाएं, सूर्यभेदी प्राणायाम, भस्त्रिका, भ्रामरी और शवासन करने से रोग का मूल कारण दूर हो जाता है। किसी अच्‍छे योग विशेषज्ञ की निगरानी में इन आसनों को करना चाहिए।

मकरासन के लिए पेट के बल उल्टा लेटकर दोनों हाथों की कोहनियों को जमीन पर रखकर आगे से सिर व छाती उठाते हुए अंगुलियों को आपस में फंसाकर हाथ का स्टैंड बनाकर ठोड़ी के नीचे रख लें। अब सांस भरते हुए पहले बाएं पैर को घुटने की तरफ मोड़ कर एड़ी को नितंब के निकट लाएं, फिर सांस निकालते हुए पैर को वापस जमीन पर ले जाएं। इसी प्रकार पैर बदलकर करें और फिर दोनों पैरों को एक साथ मोड़कर सांस ऊपर भरते हुए एड़ियों को नितंबों के निकट लाएं फिर सांस निकालते हुए वापस लाए। 3 से 4 बार इस अभ्यास को दोहरा लें।

सावधानी: हृदय रोगी कपालभाथी, वातक्रम कपालभाथी में धीरे-धीरे सांस ऊपर फेंके व भरें। इसी प्रकार हाई ब्लड प्रेशर, एसिडिटी, बवासीर के रोगियों को सूर्य की तरफ प्राणायाम और भस्त्रिका नहीं करना चाहिए। भस्त्रिका करते समय सांस भरते व निकालते समय शरीर न हिलाएं।

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